बांग्लादेश:हसीना की जीत लेकिन भारत का सतर्क रहना जरूरी ,Bangladesh: Hasina's victory but India needs to be cautious

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(राकेश अचल-विभूति फीचर्स)
भारत के सहयोग से 1971 में वजूद में आये बांग्लादेश में आम चुनाव हो गए । ये बांग्लादेश के अब तक हुए चुनावों में से सर्वथा अलग चुनाव थे ,क्योंकि इन चुनावों में विपक्ष था ही नहीं । बांग्लादेश में हिंसा की आशंका के बीच हुए आम चुनावों में प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को बड़ी जीत मिली है। कुल 299 सीटों में से अवामी लीग ने 222 सीटें जीतीं। दूसरे बड़े राजनीतिक दल जातीय पार्टी को सिर्फ 11 सीटें मिलीं। 65 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते हैं। बांग्लादेश में सरकार बनाने के लिए 151 सीटों की जरूरत होती है। चुनावों से दूर रही मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी)ने चुनाव परिणामों को खारिज कर दोबारा चुनावों की मांग की है।अमेरिका लगातार बांग्लादेश चुनाव को अलोकतांत्रिक बता रहा है. वहीं ब्रिटेन ने इसे 'वन वुमन शो 'कहा है ।
भारत इस समय चूंकि धर्म के खुमार में डूबा हुआ है इसलिए किसी को बांग्लादेश के आम चुनावों के बारे में चर्चा करने की न फुरसत है और न जरूरत। जबकि इन आम चुनावों के बाद आये नतीजों पर सख्त निगाह रखने की जरूरत है। हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने बांग्लादेश को बनते देखा है,इसलिए हमारी दिलचस्पी हमेशा बांग्लादेश में रही है । बांग्लादेश विश्व में आठवाँ सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जिसकी आबादी 16.4 करोड़ से अधिक है। भू-क्षेत्रफल के मामले में, बांग्लादेश 92 वें स्थान पर है, जिसकी लम्बाई 148,460 वर्ग किलोमीटर है, जो इसे सबसे घनी आबादी वाले देशों में से एक बनाता है।, बांग्लादेश की कुल आबादी का 98 फीसदी हिस्सा बंगाली हैं, जो इसे दुनिया में सबसे अधिक सजातीय राज्यों में से एक बनाता है ।बांग्लादेश की बड़ी मुस्लिम आबादी इसे तीसरा सबसे बड़ा मुस्लिम-बहुल देश बनाती है। बांग्लादेश के संविधान के अनुसार यहां का राजकीय धर्म इस्लामिक है किन्तु बांग्लादेश को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहा जाता है वैसे बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता की हालत किसी से छिपी नहीं है । सत्तारूढ़ दल देश को इस्लामिक राष्ट्र बनाकर धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाये रखना चाहता है। भारत में भी इसी तिमाही में आम चुनाव होना है। इन चुनावों पर बांग्लादेश के आम चुनावों के नतीजों का कितना असर पड़ेगा ,कहना कठिन है।  
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने रविवार को हुए आम चुनाव में लगभग 75 प्रतिशत सीटें जीतकर लगातार चौथी बार सत्ता में वापसी की है। यहां चुनाव में पिछली बार की तुलना में कम नागरिकों ने भाग लिया।
 आपको बता दूँ की बांग्ला देश आर्थिक समस्याओं से भी घिरा हुआ है, जिसे पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से लगभग 5 बिलियन डॉलर के कर्ज की दरकार थी। दुर्भाग्य से बांग्लादेश ने तटस्थ चुनाव परंपरा को त्याग दिया है ,. अपने भारत समर्थक रुख के बावजूद, शेख हसीना को कथित लोकतांत्रिक मानदंडों के उल्लंघन के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है, जिसमें 8 हजार विपक्षी हस्तियों की गिरफ्तारी भी शामिल है। इन कारणों से संयुक्त विपक्ष ने चुनाव बहिष्कार का आह्वान किया. शेख हसीना ने विपक्ष को 'आतंकवादी' तक कह दिया। 
आरोप है की बांग्लादेश के आम चुनावों में मतदान में हेरफेर किया गया और यहां तक कि बच्चों ने भी मतदान किया। अवामी लीग 2009 से सत्ता में है, और 2014 और 2018 के पिछले दो आम चुनाव भी विपक्ष के बहिष्कार और बड़े पैमाने पर धांधली के आरोपों से प्रभावित हुए थे।बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के पिछले कुछ वर्षों में चुनाव-समय प्रशासन को बहाल करने के प्रयासों ने नवंबर में राष्ट्रव्यापी नाकाबंदी की श्रृंखला का मुकाबला करने के लिए पुलिस की बर्बरता और कई अदालती मामलों को आमंत्रित किया है। भारी हंगामे और आशंकाओं के बीच चुनाव हुआ।अमेरिका ने इस प्रक्रिया पर यह कहते हुए आपत्ति जताई कि यह उचित नहीं है।
  बांग्लादेश में विपक्ष के बहिष्कार के आव्हान पर 77.5 प्रतिशत मतदाताओं ने चुनावों का बहिष्कार किया। वहां की सरकार बढ़ती कीमतों और बैंकिंग संकटों से जुड़ी आर्थिक चिंताओं और गैर-जिम्मेदारी के आरोपों से घिरी हुई है।यह राजनीतिक परिदृश्य 1971 की उथल-पुथल वाली घटनाओं से समानता रखता है जब बांग्लादेश भारत के समर्थन से एक नए राष्ट्र के रूप में उभरा। उस समय बांग्लादेश ने पाकिस्तान की छाया से छुटकारा पाने के लिए कठिन संघर्ष किया था।
मेरे हिसाब से अवामी लीग की जीत भारत के लिए अनुकूल है, वहीं हसीना शासन की अहंकारी कार्यप्रणाली मुसीबतें ला सकती है।हसीना विपक्ष से ज्यादा परेशान नहीं हैं, लेकिन जनता के विशाल समूह में असंतोष है। यह अगर बढ़ा तो उथल-पुथल हो सकती है, जो संभावित रूप से उस सामान्यीकरण प्रक्रिया को चुनौती दे सकती है, जिसमें भारत ने सक्रिय रूप से योगदान दिया है।यह भारत के लिए भी चुनौती होगा इसलिए सतर्क रहने की जरूरत है।(विभूति फीचर्स)

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