क्या है राहुल गांधी की न्याय यात्रा के निहितार्थ , What are the implications of Rahul Gandhi's Nyaya Yatra?

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✍️राकेश अचल -विभूति फीचर्स
देश की अठारहवीं लोकसभा के लिए चुनावों से पहले एक बार फिर चतुरंगनी सेनाएं सजने लगीं हैं। किसी के हाथ में धर्म-ध्वजा है तो किसी के हाथ में न्याय का शंख। रण है लेकिन भेरियां नहीं बज रहीं । सब कुछ खामोशी के साथ हो रहा है। खामोशी के साथ अयोध्या में राममंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के आमंत्रण के लिए पीले चावल बांटे जा रहे हैं।इसी बीच ख़ामोशी के साथ ही कांग्रेस ने अपनी नयी न्याय यात्रा का ऐलान कर दिया है। कहीं टूट-फूट है तो कहीं आंतरिक असमंजस। कांग्रेस के नेता इस बार भारत जोड़ो यात्रा नहीं निकाल रहे। उनकी नयी यात्रा का नाम ' न्याय -यात्रा ' है। कांग्रेस जनता के साथ केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा जनता और जन प्रतिनिधियों के साथ किये जा रहे कथित अन्याय के खिलाफ जन-जागरण के लिए यात्रा पर निकाल रही है। कांग्रेस के राहुल गांधी को पद यात्राओं का खासा अनुभव है। इस समय देश में किसी भी राजनीतिक दल के पास राहुल गांधी जैसा यात्री नहीं है । सत्तारूढ़ दल अब यात्राएं नहीं करता । सत्तारूढ़ दल अब रोड शो करता है। राजनीति में यात्राओं और रोड शो के जरिये जनता को आंदोलित किया जाता है।
राहुल गांधी की यह यात्रा 14 राज्य और 85 जिलों से गुजरेगी। इस दौरान राहुल गांधी बस से और पैदल 6,200 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा करेंगे। यह मणिपुर से शुरू होकर नागालैंड, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात से होते हुए महाराष्ट्र में समाप्त होगी। राहुल गांधी की पूर्व की भारत जोड़ो यात्रा के मुकाबले ये यात्रा बड़ी और कठिन भी है। पहली यात्रा के प्रतिसाद के रूप में कांग्रेस को कर्नाटक और तेलंगाना में सत्तारूढ़ होने का मौक़ा मिला । अब मौक़ा लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को पदच्युत करने के साथ ही उसके 400 पार के लक्ष्य को ढेर करने का भी है।
                यात्राओं के जरिये जन-जागरण और सत्ता परिवर्तन असम्भव नहीं है । देश को आजादी तक इसी तरह की यात्राओं के जरिये मिली है। कांग्रेस का देश की आजादी के 75 साल बाद भी गांधीवादी यात्राओं में यकीन है ,ये रेखांकित करने वाली बात है।जिस तरह से आरएसएस,जनसंघ और बाद में भाजपा ने धर्मध्वजाओं को नहीं छोड़ा उसी तरह कांग्रेस ने भी गांधीवाद और धर्म निरपेक्षता की मशाल जलाये रखी।भाजपा को अपने सिद्धांतों पर चलने का लाभ भी मिला और कांग्रेस को गांधी के रास्ते पर चलने का फायदा भी।दोनों के बीच का सनातन संघर्ष न अभी तक रुका है और न आगे रुकने वाला है।लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इसका रूप-रंग जरूर बदला हुआ नजर आएगा।आपको याद दिला दूँ कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पहले दक्षिण से उत्तर की ओर हुई थी। लेकिन न्याय यात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर जाएगी। ये यात्रा उस मणिपुर से प्रारंभ होगी जहां से दिल दहलाने वाली खबरें और वीडियो सामने आते रहे हैं। शायद राहुल गांधी इसके जरिए मोदी सरकार के साथ उनके डबल इंजन की सरकार के दावे पर जोरदार सियासी हमला करेगें ।
कांग्रेस की ये न्याय यात्रा मकर संक्रांति से शुरू हो रही है । संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। कांग्रेस भी राजनीति के सूर्य की चाल बदलने के लिए उतावली है,लेकिन उसे कामयाबी हासिल नहीं हो पा रही है। कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए के बाद अब ' इंडिया' यानि आईएनडीआईए गठबंधन बना है। इसमें 28 दल शामिल हैं और ये वे दल हैं जो सत्तारूढ़ भाजपा के विरोधी रहे हैं। अब ये सब दल मिलकर भाजपा से बदला लेना चाहते हैं। गनीमत है कि इस यात्रा का नाम न्याय -यात्रा रखा गया है ,बदला यात्रा नहीं। वैसे आपको याद दिला दूँ कि अतीत में सत्तारूढ़ भाजपा समेत तमाम दल न्याय यात्राएं निकाल चुके हैं।
 कांग्रेस और गैर भाजपा विपक्ष अभी तक भाजपा को सत्ताच्युत करने में कामयाब नहीं हो सका है। विपक्ष की कोई कोशिश कामयाब नहीं हो पायीं लेकिन विपक्ष ने अभी तक सत्तारूढ़ भाजपा के सामने पूरी तरह से हथियार भी नहीं डाले है। ऐसे में कांग्रेस की ये न्याय यात्रा एक नई पहल है।
कांग्रेस की न्याय यात्रा को देश का गैर भाजपा विपक्ष भी अंगीकार कर इसमें शामिल होगा या नहीं ,इसे लेकर अभी कुहासा है। कांग्रेस की इस न्याय यात्रा में यदि विपक्षी गठबंधन के दल शामिल हो जाते हैं तो इसकी धार और तेज हो सकती है। इस यात्रा का लाभ समूचे विपक्ष को मिल सकता है ,अन्यथा कांग्रेस को तो कुछ न कुछ लाभ मिलना तय है। विपक्षी गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन के नेता के चेहरे की है। भाजपा इसी मुद्दे पर सबसे ज्यादा हमलावर रहने वाली है। राहुल की इस नई जोखिमपूर्ण यात्रा से भाजपा के सर पर चढ़ा राहुल गांधी का भूत और अधिक तांडव मचा सकता है। क्योंकि कोई माने या न माने लेकिन देश में राहुल गांधी ही विपक्ष का पर्याय है।स्वस्थ लोकतंत्र के लिए इस तरह की यात्राओं का स्वागत किया जाना चाहिए ,भले ही इन यात्राओं के निहितार्थ ठेठ राजनीतिक ही क्यों न हों !(विभूति फीचर्स)(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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