"मैं मध्यप्रदेश"... शिव-नाथ-गोविंद के लिए दु:खी, मोहन-उमंग-पटवारी की खुशी...i am madhya pradesh

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✍️कौशल किशोर चतुर्वेदी - विभूति फीचर्स

"मैं मध्यप्रदेश" हूं। वर्ष 2023 जाने को है। इस वर्ष ने मुझे हर साल की तरह बहुत सारे खट्टे-मीठे अनुभव दिए हैं। हालांकि "मैं मध्यप्रदेश" इस वर्ष राजनीति में ही उलझा रहा। पहले छह महीने लोगों ने मुझे कांग्रेस के साथ खड़ा पाया और दूसरी छमाही में मुझे लगातार करवट बदलते देखा। पर साल के अंतिम माह के पहले सप्ताह में दूध का दूध और पानी का पानी हो गया। मैं शांत था। कमल खिल गया था और पंजा गंभीर रूप से आहत था। वैसे राजनीति की यह पंचवर्षीय योजना मध्यप्रदेश में शिवराज और कमलनाथ के इर्द-गिर्द सिमटी रही। पहले पंद्रह माह कमलनाथ ने राज‌ किया, तो बाकी के 45 माह शिव का राज मुझ मध्यप्रदेश ने देखा है। नाथ‌ ने उसके बाद नेता प्रतिपक्ष का पद भी सुशोभित‌ किया। बाद में नैतिक दबाव आने पर नेता प्रतिपक्ष का ताज चंबल के कद्दावर नेता डॉ. गोविंद सिंह के सिर पर रख दिया। पर खुद पूरे पांच‌ साल प्रदेश अध्यक्ष बने रहे। खैर राजनीति में "जिसमें है दम, उसके हैं हम" के भाव से कांग्रेस सराबोर रही। तो भाजपा में शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होकर यह साबित करने में सफल रहे कि अगर वह दौड़ में शामिल हैं तो‌ उस प्रतियोगिता का ताज भी उनके ही सिर पर सजेगा। वह मुख्यमंत्री भी बने और मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार की वापसी के लिए भी दिन-रात एक कर दिया। डॉ. गोविंद सिंह मध्यप्रदेश के वह राजनेता बन गए हैं जो एक पंचवर्षीय में ही संसदीय कार्य मंत्री और नेता प्रतिपक्ष जैसे दो महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित कर सके। खैर इनके अलावा लोकतंत्र के चक्र में तीन अन्य नेता भी खास चर्चा में रहे। पर उनकी किस्मत 2003में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद ही चमक पाई। इन तीन महत्वपूर्ण नेताओं में सबसे पहला नाम महाकाल की नगरी के डॉ. मोहन यादव का हैं। यादव को मध्यप्रदेश का मुखिया बनाते हुए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सबको चौंका दिया। दूसरा चेहरा उमंग सिंघार का है। इस मामले में कांग्रेस ने यह साबित कर दिया कि भाजपा से लड़ने के लिए वह बदलाव की राजनीति पर अमल कर रही है और इसके तहत ही सब दिग्गजों को दरकिनार करते हुए कांग्रेस ने आदिवासी दबंग नेतृत्व सिंघार को नेता प्रतिपक्ष के पद पर आसीन कर दिया। वहीं खराब परिणाम की गाज नाथ‌ पर गिरी और पटवारी मध्यप्रदेश कांग्रेस संगठन के नए मुखिया बन गए। यह सभी राजनैतिक शख्सियत "मुझ मध्यप्रदेश" के राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान पर दर्ज हो चुकी हैं।
मैं मध्यप्रदेश शिवराज, कमलनाथ और डॉ. गोविंद सिंह के लिए बहुत दुःखी हूं। मैं बहुत साधारण स्थिति में दु:खी नहीं होता और दु:खी होने का नाटक तो कतई नहीं करता। पर शिवराज के लिए वाकई दु:खी हूं, क्योंकि 2023 की विदाई से पहले ही उनकी मुख्यमंत्री पद से विदाई हो गई। मैं दु:खी इसलिए हूं, क्योंकि कांग्रेस की सरकार बन जाती तब बात अलग थी। पर सरकार भाजपा की बनी, पर पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने की जगह शिवराज को सिर्फ विधायक बनकर सोलहवीं विधानसभा के सदन में रहना पड़ा और तो और सीएम हाउस भी दिसंबर में ही खाली कर 74 बंगला जाना पड़ा। इस अनायास हुए घटनाक्रम ने शिवराज को बहुत आघात पहुंचाया है। उधर कमलनाथ तो कांग्रेस के दिग्गज होकर भी वैसे ही बर्ताव के शिकार हो गए। पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और बाद में मुख्यमंत्री रहे फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बने रहे, अप्रैल 2022 के बाद अकेले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहकर पारी एकतरफा खेली। पर जैसे ही चुनाव परिणाम आया, तो कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने उनसे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी छीन लिया। अरे जीत-हार का खेल तो चलता ही रहता है, पर कम से कम कांग्रेस में तो इस तरह के व्यवहार की कल्पना किसी ने नहीं की थी। अब उन पर क्या बीती होगी कि अभी तक विधायक पद की शपथ भी उन्होंने नहीं ली। पूरी जिंदगी हर परिस्थिति में पार्टी में ऊंचे-ऊंचे पदों पर रहे गांधी परिवार के तीसरे पुत्र के साथ ऐसा व्यवहार और वह भी 77 साल की उम्र में, क्या बर्दाश्त करने योग्य है? मुझ मध्यप्रदेश की नजर में ऐसा व्यवहार कतई बर्दाश्त योग्य नहीं है। और इसीलिए मैं कमलनाथ के लिए भी दु:खी हूं। और मैं दु:खी हूं डॉ. गोविंद सिंह के लिए भी, क्योंकि उनकी सियासी पारी का ही अंत हो गया, विधायकी में हारने के बाद ही। अभी उनकी उम्र सन्या‌स लेने की तो नहीं थी। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इसका प्रमाण हैं। और भाजपा के नागेंद्र सिंह गुढ़ और नागेंद्र सिंह नागौद तो 80-80 साल में भी सन्यास भाव से मुक्त हैं। अब भावुक और दु:खी डाक्टर जीवन भर अजेय रहकर पहली हार से इस कदर टूट जाएंगे, ऐसा सोचा नहीं था। इसीलिए मैं मध्यप्रदेश इस कद्दावर नेता की हार से बहुत दुःखी हूं।
हालांकि दु:ख भरी इस दुनिया में खुश होने के मौकों की भी कमी नहीं है। अब देख लो मोहन को, उनका चेहरा देखकर मुझ मध्यप्रदेश का मन खुशी से झूम उठता है। अब उच्च शिक्षा मंत्री रहे मोहन का नाम तो खुद मेरे सपने में भी नहीं आया था कि अगले मुखिया का राजयोग इनका ही है। अरे मोहन ने तो ऐसा चौंकाया कि होश ही उड़ा दिए पूरे एमपी के। पूरे चुनाव नारा लगता रहा कि एमपी के मन में मोदी और मोदी के मन में एमपी। पर चुनाव परिणाम आने के बाद मोदी-शाह तो दिल्ली के हो गए और एमपी के मन में मोहन नजर आने लगे, तो मोहन के मन में तो एमपी कई जन्मों के लिए बस गया है। तो है न मेरे लिए खुशी की बात। तो मैं मध्यप्रदेश खुश हूं मोहन के चेहरे पर मुस्कान देखकर। अब नेता प्रतिपक्ष बनकर सदन में हुंकार भर रहे सिंघार को देखकर मेरा मन भी उमंग से भर गया है। नेता प्रतिपक्ष के लिए भी आदिवासी और गैर आदिवासी नामों की लंबी सूची कांग्रेस में चस्पा थी। पर उमंग ने हार नहीं मानी और बाजी अपने पाले में कर ली। तो जीतू पटवारी ने तो और भी गजब कर दिया। कांग्रेस की सरकार बनाने का दावा करने वाले जीतू खुद ही चुनाव हार गए। पर मन से कभी नहीं हारे और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनकर इतनी बड़ी रैली निकाली कि जीतने वाले कांग्रेसी विधायकों की आंखें भी फटी की फटी रह गईं। जीतू भैया की इस जीत ने तो सबको ही चौंका दिया। जीतू की खुशी देखकर "मैं मध्यप्रदेश" भी खुश हूं। 
तो हमारा मन दु:ख और खुशी से भरा हुआ है। समझा जा सकता है कि मुझ मध्यप्रदेश की हालत क्या हो रही है? मुझे 2023 जाने का दु:ख है तो 2024 आने की खुशी है। कांग्रेस की सरकार न बन पाने का दु:ख है तो भाजपा सरकार बनने से मैं खुश हूं। मोहन, जीतू, उमंग के अलावा भी कई और नेता जैसे उप मुख्यमंत्री द्वय राजेंद्र शुक्ला, जगदीश देवड़ा और उप नेता प्रतिपक्ष बने हेमंत कटारे को जिम्मेदारी मिलने पर इन सबके चेहरों की खुशी मुझे झूमने को कहती है, पर शिवराज, कमलनाथ और डॉ. गोविंद सिंह की हालत देखकर मैं बहुत दुःखी हो जाता हूं। अलविदा 2023, मेरी यादों में तुम समाए रहोगे और स्वागत है 2024, तुम आगे भी बहुत सारे नए नए दृश्य दिखाने वाले जो हो...। (विभूति फीचर्स)

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