1932 खतियान आधारित बिल हुआ विधानसभा में पास, मुख्यमंत्री बोले- अटॉर्नी जनरल का परामर्श तर्कसंगत नहीं, महाधिवक्ता से लिया गया परामर्श , 1932 bill passed

0

✍️ AKM NEWS DESK
ईचागढ़ - 1932 Khatiyan Bill Passed | झारखंड विधानसभा में एक बार फिर 1932 का खतियान पारित हो गया है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान तीसरे दिन बुधवार को झारखंड के वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव ने 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति बिल 'खतियान आधारित झारखंडी पहचान से संबंधित विधेयक' को सदन के पटल पर रखा । सरकार की ओर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और विपक्ष की ओर से नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी ने इस पर अपने विचार रखे। इसके बाद स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने दोनों पक्षों से पूछा कि वे इसके पक्ष में हैं या इसके विरोध में, इसके बाद ध्वनिमत से इस बिल को पारित कर दिया गया। नवंबर 2022 में जिस बिल को विधानसभा से पारित कराकर राज्यपाल को भेजा गया था, उसी बिल को बिना किसी संशोधन के फिर से सदन से पारित करवाया गया है.।पिछले साल विधानसभा ने बिल को पारित कर इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव किया था। अटॉर्नी जनरल ने इस पर कुछ आपत्तियां जताईं हैं ।राज्यपाल ने उन आपत्तियों के साथ विधेयक को विधानसभा को लौटा दिया था । इस विधेयक में बिना कोई संशोधन किये, उसे फिर से पारित कर दिया है। पिछले साल पारित विधेयक में नियोजन में प्राथमिकता के मामले में आपत्ति जतायी गयी थी और संवैधानिक प्रावधान के अनुरूप नहीं बताया गया था।

 झामुमो ने कहा था- फिर इसी बिल को पारित कराएंगे 

स्पीकर ने शीतकालीन सत्र के पहले दिन 15 दिसंबर को राज्यपाल का संदेश पढ़कर विधानसभा में सुनाया था. इसके बाद विधेयक की पुरानी कॉपी विधायकों के बीच वितरित की गयी थी. इसके बाद ही सरकार ने संकेत दिये कि विधेयक को फिर से उसी रूप में सदन में पारित किया जाएगा. झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के मुख्य प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि 1932 के खतियान आधारित विधेयक को फिर से सदन के पटल पर रखा जाएगा और उसे पारित कराया जाएगा. इस बिल को आज पारित कर दिया गया.

मुख्यमंत्री ने बील को लेकर किया चर्चा 

खतीयान आधारित स्थानीयता को परिभाषित करने के मामले में विधेयक पर चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि 1932 खतियान आधारित स्थानीयता इस राज्य के करोड़ों आदिवासी और मूलवासी की अस्मिता एवं पहचान से जुड़ी हुई है। यह उनकी बहुप्रतीक्षित मांग है। उनकी भावना एवं आकांक्षा के अनुरूप पिछले वर्ष 11 नवंबर को इस सदन ने ध्वनिमत से पारित कर इसे महामहिम राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा था। दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने जब अलग राज्य की लंबी लड़ाई लड़ी, तो उस वक्त भी यहां के स्थानीय लोगों का झारखंड राज्य की संपदा और नौकरियों पर हक रहे, इसी जनभावना से वह लंबी लड़ाई लड़ी थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि झारखंड बनने के 20 वर्षों तक इस दिशा में कोई पहल नहीं की गयी।
मुख्यमंत्री ने सदन में कहा कि अटॉर्नी जनरल ने जो परामर्श दिया है, उसकी कंडिका-9 से 15 में स्थानीयता की परिभाषा एवं उसके आधार पर सुविधाएं उपलब्ध कराने को पूरी तरह से जायज ठहराया है. उन्होंने झारखंड सरकार के प्रयास की सराहना की है. लेकिन, विधेयक की धारा-6 पर परामर्श के लिए उन्होंने जिस चीबलू लीला प्रसाद साव बनाम आंध्रप्रदेश तथा सत्यजीत कुमार बनाम झारखंड राज्य में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अपना आधार बनाया है,वे दोनों ही फैसले वर्तमान विधेयक के परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक नहीं हैं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि दोनों आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान की पांचवीं अनुसूची की कंडिका-5 (1) में राज्यपाल को कानून बनाने अथवा उसमें संशोधन करने का अधिकार नहीं है। संविधान के अनुच्छेद-309 के तहत नियम बनाने की यह शक्ति राज्य की विधानसभा को है , जिससे हमने विधेयक बनाने और इस पर विधानसभा की सहमति प्राप्त करने का एवं उसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने का निर्णय लिया।
हेमंत सोरेन ने कहा कि एजी ने जिन अन्य आदेशों का उल्लेख किया है, उनमें से Indira Sahwney Vs Union of India का संबंध पिछड़े वर्ग को आरक्षण उपलब्ध कराने से है। जेनरल मैनेजर दक्षिण रेलवे बनाम रंगाचार का संबंध ST/SC को प्रोन्नति में आरक्षण उपलब्ध कराने से है. अखिल भारतीय शोषित कर्मचारी संघ (रेलवे) बनाम भारत सरकार का संबंध ST/SC वर्ग के लिए आरक्षित पदों की रिक्ति को आगामी वर्षों में कैरी फॉरवर्ड करने से है एवं State of Kerala Vs. N. M Thomas का संबंध ST/SC श्रेणी के लोगों को प्रोन्नति देने से है. इसके उलट वर्तमान विधेयक का उद्देश्य स्थानीयता परिभाषित करना एवं उसके आधार पर स्थानीय को रोजगार सहित अन्य लाभ प्रदान करना है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस प्रकार इन सभी मामलों में पारित आदेश का वर्तमान विधेयक से कोई लेना देना नहीं है।



मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि राज्य सरकार ने झारखंड राज्य के महाधिवक्ता से इस विषय पर परामर्श लिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि विधानसभा से पारित विधेयक को संसद के द्वारा नौंवी अनुसूची में शामिल कराया जा सकता है ।

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

--ADVERTISEMENT--

--ADVERTISEMENT--

NewsLite - Magazine & News Blogger Template

 --ADVERTISEMENT--

To Top