Unique news : विपक्ष के बिना और सूचना आयोग के समापन से उत्पन्न हुआ राज्य में राजनीतिक हलचल

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विजय शंकर नायक
जिस राज्य में विपक्ष का नेता ना हो और जिस कारण राज्य सूचना आयोग 9 मई 2020 से मृत और निष्क्रिय हो जाए तो भाजपा नेताओं को चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए


उपरोक्त बातें आज झारखंडी सूचना अधिकार मंच के केंद्रीय अध्यक्ष सह सूचना अधिकार कार्यकर्ता विजय शंकर नायक ने आज ही के दिन सूचना अधिकार कानून संपूर्ण भारत पर लागू किए जाने एवं आरटीआई दिवस पर अपने प्रतिक्रिया में कहीं । इन्होंने यह भी बताया कि आज ही के दिन केंद्र में बैठी पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकार ने दिनांक 12.10.2005 को सूचना अधिकार कानून को संपूर्ण भारत में लागू कर एक क्रांतिकारी कदम उठाया था ताकि देश की जनता इस कानून के माध्यम से सरकारी कागजातों तक अपनी पहुंच बना सके, कोई भी आम आदमी आरटीआई के माध्यम से सरकार से कोई भी दस्तावेज मांग कर ले सके। आजाद भारत में पहली बार एक ऐसा कानून कांग्रेस की सरकार ने देश को दिया जिससे काफी क्रांतिकारी अमूल- चूल परिवर्तन किए गए और भ्रष्टाचारियों के नकेल भी कसे गए थे । मगर आज यह कानून झारखंड में मृत प्राय हो चुका है आज 3 वर्ष से अधिक हो चुके हैं, राज्य सूचना आयोग मृत प्राय होने से सूचना आमजनो को नहीं मिल पा रहा है और तो और राज्य के सूचना आयोग में 25,000 से अधिक द्वितीय अपीलवाद एवं शिकायतवाद वर्षो से लंबित पड़े हुए हैं तो सरकारी कार्यालयो में लाखों आवेदन पेंडिंग है। कोई देखने या सुनने वाला नहीं है । 9 मई 2020 से ही राज्य सूचना आयोग में सूचना आयुक्त के सभी पद रिक्त पड़े हुए।
श्री नायक ने आगे बताया कि पूर्व के मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में राज्य सूचना आयोग में 10 सूचना आयुक्त के पद सृजत कर 10 पदों में सूचना आयुक्त का मनोनयन कर दिया गया था वह सूचना अधिकार कानून के लिए स्वर्णिम काल था । आज हेमंत और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने पर 10 सूचना आयोग के पदों को कम कर मात्र 6 सूचना आयुक्त का पद बनाया गया और 4 सूचना आयुक्त के पद को खत्म तो किया ही गया साथ ही साथ सूचना आयोग को भी डेड कर दिया गया । इन्होंने यह भी बताया कि झारखंड सरकार के कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग के द्वारा ज्ञापाँक -सू0अ0अधि0-03-15 / 2014 का0 1892 रांची /दिनांक 27 फरवरी 2019 को ओम प्रकाश शाह सरकार के उप सचिव के हस्ताक्षर के माध्यम से राज्य सूचना आयोग में राज्य सूचना आयुक्त के रिक्त पदों हेतु विहित प्रपत्र में आवेदन मांगे गए थे जिनकी अंतिम तिथि दिनांक 31-3- 2019 थी उसके बाद करीब 300 लोगों ने आयुक्त पदों के लिए आवेदन दिए गए मगर आज तक उन आवेदनों पर कोई कार्रवाई नहीं किया गया और ना ही सूचना आयुक्त के पदों पर नियुक्ति की गई ।
श्री नायक में यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय एवं झारखंड उच्च न्यायालय में कई बार सरकार को सूचना आयुक्त के पदों पर नियुक्ति हेतु निर्देश दिए गए मगर आज तक नियुक्ति नहीं की गई। इन्होंने आज तक सूचना आयुक्त की नियुक्ति नहीं होने के लिए भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण रुप से जिम्मेवार बताया है, क्योंकि जब तक झारखंड में विपक्ष का नेता का चयन नहीं होता तब तक यह नियुक्ति नहीं की जा सकती और भाजपा नहीं चाहती कि राज्य में सूचना आयुक्त की बहाली हो सके क्योंकि नियुक्ति में विपक्ष का नेता की अनुशंसा होना अनिवार्य है । आज भाजपा के नेता लोग भी लोग इस दिशा में ना तो वह विपक्ष का नेता का चयन कर पा रहे हैं। आज सिर्फ भाजपा के लोग सता कैसे मिले और सता की मलाई खाने से जो वंचित रहे हैं इसके लिए सिर्फ जोड़-तोड़ की राजनीति करने का काम कर रहे हैं । जनता की बुनियादी सवालों से भारतीय जनता पार्टी विगत तीन वर्षों से भागने का काम कर रही है सिर्फ और सिर्फ हेमंत सोरेन सरकार को कैसे बदनाम किया जाए सत्ता से हटाया जाए और कैसे भाजपा फिर से सत्ता में काबिज हो सिर्फ इसकी राजनीति भारतीय जनता पार्टी झारखंड में कर रही है । इन्होंने हेमंत सरकार से मांग किया कि वे इस दिशा में कोई सकारात्मक ठोस पहल करने की दिशा में आवश्यक कार्रवाई करे ताकि राज्य में सूचना अधिकार कानून को मजबूती से लागू किया जा सके और राज्य में सूचना आयुक्त की नियुक्ति हो सके इस दिशा में आज ठोस पहल कीआवश्यकता समय की मांग है जिसे अनदेखी नहीं की जा सकती .

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